अन्य ख़बरेंउत्तराखंडउत्तराखंड की ताज़ा खबरदेहरादूनदेहरादूनराज्य

पर्वों का राजा : भाद्रपद मास में मनाए जाने वाला पर्यूषण पर्व

देहरादून। 21 अगस्त से 28 अगस्त तक श्वेतांबर जैनियों द्वारा और 28 अगस्त से 6 सितंबर तक दिगंबर जैनियों द्वारा मनाया जाएगा। श्वेतांबर जैन 21 अगस्त से 28 अगस्त तक पर्युषण पर्व मनाएंगे, जिसमें 28 अगस्त को संवत्सरी (क्षमा दिवस) मनाया जाएगा। दिगंबर जैन 28 अगस्त से 6 सितंबर तक पर्युषण पर्व मनाएंगे, जिसे दश लक्षण पर्व भी कहा जाता है।
पर्युषण पर्व, जिसे पर्वराज भी कहा जाता है, जैन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो आत्म-शुद्धि, पश्चाताप और क्षमा याचना का पर्व है। भाद्रपद मास में मनाए जाने वाला पर्यूषण पर्व को पर्वों का राजा कहा जाता है। पर्युषण पर्व जैन धर्मावलंबियों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं को शुद्ध करने तथा जैन जीवन पद्धति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का समय हैं। आत्मशुद्धि करने वाला यह पर्व मनुष्य के जीवन में संजीवनी का काम करता है। पर्युषण पर्व को जैन समाज में सबसे बड़ा पर्व माना जाता. पर्युषण को जैन धर्म के लोग काफी महत्वपूर्ण त्योहार मानते हैं। जैन धर्म में पर्युषण को पर्वों का राजा कहा जाता है। ये पर्व भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है। साथ ही मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस महापर्व के जरिए जैन धर्म के अनुयायी उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम ब्रह्मचर्य के जरिए आत्मसाधना करते हैं।
जैन धर्म में पर्युषण को दशलक्षण के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, जैन धर्म में दो क्षेत्र हैं। एक दिगंबर और दूसरा श्वेतांबर। श्वेतांबर समाज 8 दिन तक इस त्योहार को मनाते हैं, जिसे अष्टान्हिका कहा जाता है। वहीं दिगंबर समाज जैन दस दिन तक पर्युषण पर्व को मनाते हैं, जिसे दसलक्षण कहते हैं। इस दौरान लोग ईश्वर के नाम पर उपवास करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
जैन धर्म में उपवास यानी व्रत पर्युषण पर्व का एक महत्वपूर्ण अंग है। हिंदू धर्म के नवरात्रि की तरह ही ये त्योहार मनाया जाता है। शक्ति और भक्ति के अनुसार केवल एक दिन या उससे अधिक की अवधि तक व्रत रखा जा सकता है। वहीं सूर्यास्त के बाद वो भोजन नहीं करते हैं।
पर्युषण पर्व की मुख्य बातें जैन धर्म के पांच सिद्धांतों पर आधारित हैं। जैसे- अहिंसा यानी किसी को कष्ट ना पहुंचाना, सत्य, चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी जरूरत से ज्यादा धन एकत्रित ना करना। मान्यताओं के अनुसार, पर्युषण पर्व के दौरान जैन धर्मावलंबी धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। पर्व के दौरान कुछ लोग व्रत भी रखते हैं। पर्युषण पर्व के दौरान दान करना सबसे ज्यादा पुण्य का काम माना जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button