उत्तराखंड

अब नापी जा सकती है हवा की गुणवत्ता

हरिद्वार 24 जून। हरिद्वार स्थित देवसंस्कृति विश्व विद्यालय में अब हवा की गुणवत्ता भी नापी जा सकती है। इस हेतु एक ऐसा संयंत्र स्थापित हुआ है, जिसके माध्यम से हवा की गुणवत्ता को आसानी से नापी जा सकती है। इस संयंत्र का आविष्कार गायत्री विद्यापीठ के पूर्व छात्र एवं अहमदाबाद विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर साइंस के विद्यार्थी देवस्य देसाई ने किया। देवस्य देसाई ने बताया है कि इस सिस्टम में एक उच्च परिशुद्धता वायु गुणवत्ता सेंसर से लैस एक ट्रांसमीटर मॉड्यूल है, जो तापमान, आर्द्रता, बैरोमीटर का दबाव, गैस सामग्री और कण पदार्थ जैसे पर्यावरणीय डेटा एकत्र करता है। फिर यह डेटा लोरावन प्रोटोकॉल के माध्यम से अंदर रखे रिसीवर मॉड्यूल में प्रेषित में करता है, जो क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है। लोरावन प्रोटोकॉल उपकरणों को न्यूनतम बिजली उपयोग के साथ लंबी दूरी पर संचार करने में सक्षम बनाता है, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में भी कुशल और विश्वसनीय डेटा ट्रांसमिशन सुनिश्चित होता है। यह नवाचार कठोर जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जहाँ बाहरी निगरानी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। इसके अलावा, परियोजना की नगण्य लागत इसके निहितार्थ को व्यापक बनाती है। व्यक्तियों को अपने स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाने से लेकर प्रदूषण के मुद्दों को संबोधित करने में ग्रामीण समुदायों की सहायता करना और पर्यावरणीय पहल को चलाने के लिए नीति निर्माताओं को महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने देवस्य देसाई के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। प्रतिकुलपति ने कहा कि यह शोध आने वाले दिनों में हिमालयन राज्यों के लिए पर्यावरण की जानकारी हेतु उल्लेखनीय योगदान देगा। देवस्य देसाई ने बताया कि अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैलदीदी की प्रेरणा एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या जी के मार्गदर्शन-सहयोग से हवा की गुणवत्ता नापने वाले संयंत्र का इजाद किया है। उल्लेखनीय है कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय युवाओं को शोध पर विशेष मार्गदर्शन और वातावरण प्रदान करता है।

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