द्रोणागिरी पर्वत की तलहटी पर बसा द्रोणागिरी गांव
चमोली। चमोली जिले के जोशीमठ विकास खण्ड अन्तर्गत द्रोणागिरी पर्वत की तलहटी पर द्रोणागिरी नामक गांव बसा हुआ है। यहां शीतकाल में भारी बर्फबारी होने के कारण यहां के स्थानीय निवासी दूसरी जगहों पर निवास करते है, गर्मी के समय जब यहां का मौसम रहने योग्य होता है, तो गांव के लोग वापस यहां रहने के लिए आ जाते हैं। जोशीमठ से मलारी की तरफ लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर जुम्मा नाम की एक जगह आती है। यहीं से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है। संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता बहुत कठिन है। ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग यहां पहुंचते हैं। उत्तराखंड के चामोली जिले में जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है नीति गांव। इस गांव में द्रोणागिरी पर्वत है। इस पर्वत का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।
देशभर में भगवान हनुमान को पूजा जाता है। हर मंगलवार और शनिवार के देशभर हनुमान मंदिर में लोगों की लंबी कतार लगती है, लेकिन देश में एक ऐसा स्थान भी जहां पर बजरंगबली की पूजा करना वर्जित है। इस जगह पर हनुमान जी को चोर माना जाता है और वो भी पहाड़ चोर। ये जगह है उत्तराखंड स्थित द्रोणगिरी गांव। दरसल इस गांव के लोग हनुमान जी की एक बात से इतना नाराज है कि उनकी पूजा नहीं करते और ये नाराजगी आज से नहीं बल्कि उस समय से जब बजरंग बली ने संजीवनी बूटी के लिए पूरा पहाड़ उठा लिया था।
जब मेघनाद के वार से लक्ष्मण बेहोश हो गए थे तो उन्हें होश में लाने के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत पड़ी और हनुमान बूटी लेने चमोली जिले के द्रोणगिरी पर्तत पर पहुंचे। इसी पर्वत की तलहटी में द्रोणगिरी गांव बसा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जब बूटी लेने आए तो गांव की एक वृद्घ महिला ने उन्हें पर्वत का वह हिस्सा दिखाया, जहां बूटी उगती थी और भगवान हनुमान संजीवनी के बदले पूरा पर्वत ही अपने साथ ले गए। इसी बात से नाराज होकर यहां के लोग उनकी पूजा नहीं करते। यहां तक कि इस गांव में लाल रंग का ध्वज लगाने पर भी पाबंदी है।
माना जाता है कि पर्वत ले जाने से नाराज वहां के लोगों ने उस वृद्ध महिला का भी समाज से बहिष्कार कर दिया। वैसे इस गांव में भगवान राम की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है। यहां के लोग हर वर्ष द्रोणगिरी की पूजा करते है, लेकिन इस पूजा में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि एक महिला ने ही द्रोणगिरी पर्वत का वह हिस्सा दिखाया था, जहां संजीवनी बूटी उगती थी।