1 नवम्बर को मनाई जायेगी दीपावली : डॉ. आचार्य सुशांत राज
देहरादून, 16 अक्टूबर। इस वर्ष दीपावली के पर्व को लेकर अनिश्चितिता के दौर से गुजर रहे है कुछ 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की बात कह रहे है तो कुछ 1 नवम्बर को ऐसे में ज्योतिषाचार्य डॉ. आचार्य सुशांत राज ने धर्मसंधु के अनुसार 1 नवम्बर 2024 को दीपावली मनाया जाना शास्त्रसम्मत है ‘‘ अथाश्विनामावस्यायां प्रातभ्यंगः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मी- पूजनादि विहितम्। तत्र सूर्योदयं व्याप्ति-अस्तोत्तरं घटिकाधिकारात्रिव्यापिनी दर्शे सति न संदेहः। अर्थात् कार्तिक अमावस्या को प्रदोष के समय लक्ष्मीपूजनादि कहा गया है। उसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के अनन्तर 1 घड़ी से अधिक रात्रि तक (प्रदोषकाल) अमावस्या हो तो उसी दिन लक्ष्मीपूजन किया जाना चाहिए। पुरूषार्थ-चिन्तामणि, धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु में दिये गये शास्त्रवचनों के अनुसार दोनो दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होने पर भी दूसरे दिन सूर्यउदय से सूर्यास्त (प्रदोषव्यापिनी) वाली अमावस्या के दिन ही लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत है। हमारे देश के अधिकतर पंचागकार ने भी 1 नवम्बर को दीपावली मनाये जाने को मान्य किया है। डॉ आचार्य सुशांत राज के अनुसार 1 नवम्बर को सूर्यास्त 5-35 मिनट से 8-14 मिनट तक प्रदोषकाल व्याप्त रहेगा क्योकि सांय 4-50 मिनट से 6-22 मिनट तक मेष (चर) लग्न इसके उपरांत 6-22 मिनट से 8-17 मिनट तक वृष (स्थिर) लग्न रहेगा तथा 7-14 मिनट तक रोग की चौघड़िया रहेगी। इसलिये प्रदोषकाल से पूर्व ही गौण प्रदोषकाल में श्री गणेश लक्ष्मी पूजन प्रारम्भ कर लेना चाहिए। इसी काल में दीपदान, श्री महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, बहीखाता पूजन, धर्म एवं गृहस्थ स्थलों पर दीप प्रजवल्लित करना शुभ होगा। निशिथ काल 1 नवम्बर को रात्रि 8-14 मिनट से 10-52 मिनट तक रहेगा। निशिथ काल में 8-17 मिनट से 11-31 मिनट तक मिथुन लग्न, 8-53 मिनट से 10-32 मिनट तक लाभ की चौघड़िया भी रहेगी। जो लोग प्रदोषकाल से पूर्व पूजन न प्रारम्भ कर सके उन्हें रात्रि 8-53 मिनट से पूजन प्रारम्भ करना चाहिए। इस अवधि में श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त, पुरूष सूक्त कनकधारा स्त्रेत तथा अन्य सिद्धिदायक स्त्रेतों का पाठ करना चाहिए। महानिशिथ काल रात्रि 10-52 मिनट से अर्धरात्रि 1-30 मिनट तक रहेगा। इस समयावधि में 10-32 मिनट से 12-11 मिनट तक उद्वेग की अशुभ चौघड़िया रहेगी। 10-11 मिनट से 1-50 मिनट तक शुभ की चौघड़िया श्रेष्ठ रहेगी। इसलिये इस अवधि में काली उपासना यज्ञादि किये जाते है।