मनरेगा का नाम बदलकर उसे एक नई योजना के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास

देहरादून। भाजपा सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर उसे एक नई योजना के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास केवल प्रतीकात्मक परिवर्तन नहीं है, बल्कि इसके मूल स्वरूप और अधिकार आधारित ढांचे को कमजोर करने की गंभीर कोशिश है।
मनरेगा एक कानूनी गारंटी थी, जो मांग पर रोजगार, केंद्र की वित्तीय जिम्मेदारी और ग्राम सभाओं व पंचायतों की भागीदारी पर आधारित थी। नई व्यवस्था में केंद्र का नियंत्रण बढ़ाकर राज्यों पर खर्च का बोझ डालना, शर्तें लागू करना और तकनीकी बाधाएं खड़ी करना राज्यों और ग्रामीण मजदूरों के हितों के खिलाफ है। मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल दिया और करोड़ों परिवारों को सम्मानजनक आजीविका का अधिकार दिलाया। इस अधिकार को कमजोर करने वाली किसी भी नीति का संसद और सड़क दोनों पर पूरी मजबूती से विरोध किया जाएगा।
गौरतलब हैं की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) का नाम बदलकर “पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार” (PBGRY) योजना करने और इसमें कई बदलाव लाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 दिन करना और इसके लिए 1.51 लाख करोड़ का बजट तय करना शामिल है, जिससे यह ग्रामीण गरीबों के लिए एक नई और विस्तारित रोजगार गारंटी योजना बन सकेगी।
यह बदलाव मोदी कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया है और जल्द ही ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी बिल’ के रूप में पेश किया जा सकता है। यह योजना ग्रामीण गरीबों के लिए अधिक लाभ सुनिश्चित करेगी, जिससे ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलेगा।
विगत 12 दिसंबर को मोदी कैबिनेट की बैठक में एक बड़ा फैसला लिया गया था। इसके तहत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना कर दिया गया है। सरकार ने इस योजना के तहत न्यूनतम गारंटीकृत रोजगार के दिनों की संख्या बढ़ाकर 125 दिन कर दी है। सूत्रों के अनुसार, न्यूनतम मजदूरी को संशोधित करके 240 रुपये प्रति दिन कर दिया गया है।
पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना से मजदूरों को होगा फायदा :- मनरेगा का नाम बदलने के बाद मजदूरों को फायदा भी होने वाला है। क्योंकि इसके तहत सरकार अब रोजगार के दिनों की संख्या बढ़ाकर 125 कर दी है। यानी 125 दिनों के कामों की गारंटी दी गई है। वहीं, मजदूरी बढ़ाकर 240 रुपये की गई है।
मनरेगा क्या थी :- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य “काम के अधिकार” की गारंटी देना है। इसका लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है, जिसके तहत प्रत्येक परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए स्वेच्छा से आगे आते हैं, एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का मजदूरी रोजगार प्रदान किया जाता है।
मनरेगा के तहत दिया जाने वाला काम :- मनरेगा के तहत दिया जाने वाला काम श्रमप्रधान होता है, जिसमें सड़क निर्माण, जल संरक्षण, तालाब की खुदाई, बागवानी और अन्य सामुदायिक विकास कार्य शामिल हैं। योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने, प्रवासी मजदूरी पर निर्भरता कम करने और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पहले नरेगा के नाम से शुरू हुई थी यह योजना :- यह योजना मूल रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एनआरईजीए) के नाम से शुरू की गई थी। बाद में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) कर दिया गया।




