उत्तराखंड

नाराज होकर ग्रामीणों ने किया मतदान का बहिष्कार

देहरादून। प्रदेश के चार जिलों में बुनियादी सुविधाएं न मिलने से नाराज होकर ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया है। चकराता, मसूरी, पिथौरागढ़ में भी लोगों ने सड़क, पानी आदि की सुविधा के विरोध में मतदान का बहिष्कार किया। उत्तराखण्ड राज्य की पांच लोकसभा सीटों के लिये प्रथम चरण मतदान संपन्न हो चुका है। मतप्रतिशत 53.64 पर आकर अटक गया है। यह बात अलग है कि निर्वाचन आयोग ने इस बार 75 प्रतिशत का टारगेट रखा था लेकिन यह टारगेट दूर-दूर तक आंकड़े को छू भी नहीं पाया। उलटा 53 प्रतिशत का आकंडा पिछले तीन चुनावों के पीछे खड़ा हो गया। इतने कम प्रतिशत की उम्मीद तो राजनीतिक पार्टियों को भी नहीं थी। खासकर भाजपा को तो बिल्कुल भी नहीं। आखिर मत प्रतिशत घटने के पीछे कारण क्या रहें। यदि इसकी खोजबीच की जायें तो कारण एक नहीं अनेक पता लगेगें। सबसे बड़ी बात तो ये रही कि धाकड़ धामी की सरकार कागजी आकंड़ो में ही दौड़ती चली गयी। धामी सरकार उन ग्रामीणों की मूलभूत समस्याओं को दूर करना तो दूर उन तक पहुंच भी नहीं पाये जो पूर्व में ही मतदान का बहिष्कार कर चुके थें। ऐसा उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार हुआ जब एक दो नहीं बल्कि प्रदेश के चार जिलों के ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार कर दिया। अकेले राजधानी देहरादून के चकराता क्षेत्र में द्वार और बिशलाड़ खत के 12 गांवों के ग्रामीणों ने मतदान तक नहीं किया। यहां तहसीलदार से लेकर एडीओ पंचायत ग्रामीणों के मनाने के लिये गांवों में पहुंचे लेकिन ग्रामीण नहीं माने। 12 गांवों ने जो चुनाव बहिष्कार किया वह किसी हंसी मजाक के लिये नहीं बल्कि मूलभूत समस्याओं के लिये किया था। वहीं चमोली, पौड़ी जिलों के ग्रामीणों ने भी मूलभूत समस्याओं के लिये ही चुनाव बहिष्कार किया था। चकराता, मसूरी, पिथौरागढ़ में सड़क, पानी आदि की सुविधा न मिलने से ग्रामीण नाराज थें और जब सरकार ने उनकी नहीं सुनी तो उनके सामने केवल मतदान का बहिष्कार ही एक आखिरी रास्ता बचा था। अब आत्मचिंतन इस बात पर होना चाहिए कि आखिर डबल इंजन की सरकार मूलभूत सविधाओं को देने में क्यों फेल हो गयी। धामी, मोदी सरकार भी मूलभूत सुविधाओं को देने में जब फेल हुई तभी मतदान का बहिष्कार हुआ।
देहरादून जिले के चकराता क्षेत्र में द्वार और बिशलाड़ खत के 12 गांवों के ग्रामीणों ने मतदान नहीं किया। छह मतदान स्थलों पर सुबह 7.00 बजे से लेकर शाम 5.00 बजे तक सन्नाटा पसरा रहा। तहसीलदार और एडीओ पंचायत ग्रामीणों को मनाने के लिए गांव में पहुंचे, लेकिन ग्रामीण नहीं मिले। मतदान स्थल मिंडाल में केवल दो मतदानकर्मियों ने मतदान किया। दांवा पुल-खारसी मोटर मार्ग का मरम्मत न होने से 12 गांवों मिंडाल, खनाड़, कुराड़, सिचाड़, मंझगांव, समोग, थणता, जोगियो, बनियाना, सेंजाड़, सनौऊ, टावरा आदि ने बहिष्कार किया। मसूरी में भी करीब सात मतदान केंद्रों पर इक्का-दुक्का ही वोट पड़े।
चमोली : चमोली जनपद में आठ गांवों के ग्रामीणों ने मतदान से दूरी बनाए रखी। निजमुला घाटी के ईराणी गांव में मात्र एक ग्रामीण का वोट पड़ा। पाणा, गणाई, देवराड़ा, सकंड, पंडाव, पिनई और बलाण गांव में ग्रामीणों ने मतदान नहीं किया। कर्णप्रयाग के संकड, आदिबदरी के पड़ाव, नारायणबगड़ के मानूर और बेड़गांव के ग्रामीण रहे मतदान से दूर। थराली के देवराड़ा और देवाल के बलाड़ में मतदान का पूर्ण बहिष्कार।
पौड़ी : विकास खंड पाबौ के मतदान केंद्र चैड़ में मतदाता वोट डालने के लिए नहीं निकले। इसकी जानकारी लगने पर आनन-फानन में निर्वाचन विभाग की टीम गांव पहुंची और ग्रामीणों से वोट डालने की अपील की। काफी मान-मनौव्वल के बावजूद सिर्फ 13 ग्रमाीणों ने ही मतदान किया, जिसमें दो मत कर्मचारियों के पड़े। चैड मल्ला व तल्ला गांवों के कुल 308 मतदाता हैं।

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